मुंबई। 2008 के मालेगांव बम धमाके मामले में मुंबई की एक विशेष एनआईए कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने इस बहुचर्चित केस में शामिल सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि कोई भी धर्म हिंसा की वकालत नहीं करता है।”
🔷 कोर्ट ने क्या कहा?
विशेष एनआईए न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा। अदालत ने मारे गए पीड़ितों के परिजनों को ₹2 लाख और घायलों को ₹50,000 मुआवजा देने का भी आदेश दिया है।
🔷 इन लोगों को किया गया बरी:
1. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (पूर्व भाजपा सांसद)
2. लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित
3. रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय
4. सुधाकर चतुर्वेदी
5. अजय राहिरकर
6. सुधाकर धर द्विवेदी
7. समीर कुलकर्णी
ये सभी अभियुक्तों पर UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) और भारतीय दंड संहिता की गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज था, जिसमें आतंकवाद फैलाने, हत्या, साजिश रचने और सांप्रदायिक तनाव भड़काने जैसे आरोप शामिल थे।
🔷 साध्वी प्रज्ञा बोलीं – ‘भगवा की जीत हुई है’
फैसले के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर कोर्ट में भावुक हो गईं। उन्होंने कहा,
> “मैंने वर्षों तक अपमान सहा, संघर्ष किया। मुझे तब कलंकित किया गया जब मैं दोषी नहीं थी। आज भगवा की जीत हुई है, हिंदुत्व की जीत हुई है। ‘भगवा आतंकवाद’ का झूठा आरोप अब झूठा साबित हो गया है।”
कोर्ट परिसर से बाहर निकलते हुए उन्होंने मीडिया से कहा,
“मेरे जीवन के 17 साल बर्बाद हो गए। ईश्वर उन्हें दंड देगा जिन्होंने भगवा को बदनाम किया।”
🔷 मालेगांव धमाका – क्या हुआ था?
29 सितंबर 2008 को मालेगांव (महाराष्ट्र) में एक मोटरसाइकिल में विस्फोट हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। उस समय यह मामला देशभर में चर्चा का विषय बन गया था और ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द की उत्पत्ति भी यहीं से हुई थी।
🔷 निष्कर्ष
इस फैसले को लेकर देश की राजनीति में फिर हलचल तेज हो गई है। जहां एक ओर आरोपी राहत की सांस ले रहे हैं, वहीं कई विपक्षी नेता फैसले पर सवाल भी उठा रहे हैं।
यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था में लंबी कानूनी प्रक्रिया और सबूतों के महत्व को दर्शाता है|
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