राशन वितरण में नई ई-पॉश मशीन बनी परेशानी का सबब, उपभोक्ता और विक्रेता दोनों परेशान

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सरायपाली, महासमुंद | सौरभ सतपथी रिपोर्ट

महासमुंद जिले के सरायपाली क्षेत्र से राशन वितरण को लेकर बड़ी समस्या सामने आ रही है। शासन द्वारा उचित मूल्य की दुकानों में नई ई-पॉश मशीनें (e-PoS) तो वितरित कर दी गई हैं, लेकिन इन मशीनों के तकनीकी खामियों के चलते राशन वितरण की गति बेहद धीमी हो गई है। इससे उपभोक्ताओं को अपने हिस्से के राशन के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है।

शासन के निर्देशों पर शुरू हुआ 3 महीने का राशन वितरण

प्रदेश भर में एक साथ तीन माह का राशन वितरण किया जा रहा है। शुरुआत में विक्रेताओं ने पुराने ई-पॉश मशीन के जरिए ओटीपी सिस्टम से राशन देना शुरू किया, लेकिन एक दिन में सिर्फ 10 से 15 उपभोक्ताओं को ही राशन मिल पा रहा था। इसके बाद शासन ने 20 दिन बाद नई ई-पॉश मशीनें उपलब्ध कराईं जो आधार और बायोमेट्रिक सत्यापन आधारित हैं।

नई मशीन, नई परेशानियाँ

हालांकि नई मशीनों के आने से जहां प्रक्रिया में पारदर्शिता और तेजी की उम्मीद थी, वहीं धरातल पर तस्वीर कुछ और है। नई मशीनों के संचालन में कई तकनीकी दिक्कतें सामने आ रही हैं, जैसे:

  • नेटवर्क कनेक्टिविटी की समस्या
  • बार-बार हैंग होना
  • सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी
  • डिस्प्ले का गर्म हो जाना
  • बायोमेट्रिक सत्यापन में विफलता

इन समस्याओं के चलते दिनभर में मुश्किल से 20 से 25 कार्डधारकों को ही राशन मिल पा रहा है। बाकी उपभोक्ताओं को अगली तारीख के लिए पर्ची लेकर वापस लौटना पड़ रहा है।

हितग्राहियों को राशन के लिए करना पड़ रहा है इंतजार

ग्रामों में उपभोक्ताओं की लंबी कतारें देखी जा रही हैं, और कई बार उन्हें निराश होकर खाली हाथ लौटना पड़ता है। इससे घर में राशन की किल्लत की स्थिति बन रही है। विक्रेता भी मशीन की समस्याओं से जूझ रहे हैं और दिनभर मानसिक तनाव में काम कर रहे हैं।

जिला खाद्य अधिकारी ने दिया आश्वासन

जिला खाद्य अधिकारी अजय यादव ने बताया कि मशीनों से जुड़ी समस्याओं को उच्च अधिकारियों को अवगत कराया गया है। जल्द से जल्द समाधान कराकर वितरण व्यवस्था को फिर से सुचारु किया जाएगा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि उपभोक्ताओं को जल्द राहत मिलेगी।

निष्कर्ष:

नई तकनीक को जमीनी स्तर पर लागू करने से पहले उसकी पूरी जांच और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। राशन जैसी जरूरी सुविधा में देरी से आम जनता को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। अब देखना होगा कि प्रशासन कब तक इस समस्या का स्थायी हल निकाल पाता है।

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