महाभारत कथा: श्राप से जन्मे विदुर और भीष्म, देवताओं-असुरों के अंश से हुए पांडव-कौरवों का अवतार

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महाभारत.  केवल एक युद्धगाथा नहीं है, बल्कि देवताओं, ऋषियों, असुरों और मनुष्यों के बीच हुई एक ऐसी लीला है, जो धर्म की स्थापना, अधर्म के अंत और धरती पर संतुलन की पुनर्स्थापना का माध्यम बनी। इस कथा के केंद्र में भगवान श्रीकृष्ण हैं, लेकिन उनके साथ-साथ कई पात्र ऐसे भी हैं, जिनका जन्म देवताओं, असुरों और गंधर्वों के अंश से हुआ था।

क्यों हुए देवताओं को अवतार लेने पर मजबूर?

नैमिषारण्य में महाभारत कथा सुनाते हुए उग्रश्रवा जी बताते हैं कि जब पृथ्वी पर असुरों ने मनुष्यों के रूप में जन्म लेकर अत्याचार शुरू कर दिए, तो उनका भार सहन करना कठिन हो गया। राक्षसों ने केवल मानव योनि ही नहीं, बल्कि घोड़ों, बैलों, भैंसों और मृगों के रूप में भी जन्म लेना शुरू कर दिया।

धरती, इस भार को सह न पाने के कारण गाय का रूप धारण कर ब्रह्माजी के पास पहुंची और अपनी पीड़ा सुनाई। तब ब्रह्मा ने सभी देवताओं, गंधर्वों और अप्सराओं को आदेश दिया कि वे अपने-अपने अंश से पृथ्वी पर अवतरित हों।

भगवान विष्णु का श्रीकृष्ण रूप में वादा

ब्रह्माजी सभी देवताओं को लेकर वैकुण्ठ पहुंचे, जहां भगवान विष्णु ने कहा:

“पृथ्वी को आश्वस्त करें कि मैं स्वयं उसके भार को हल्का करूंगा। मैं श्रीकृष्ण रूप में अवतरित होकर धर्म की स्थापना करूंगा और राक्षसों का संहार करूंगा। आप सभी देवता मेरे कार्य में सहयोग के लिए अवतार लें।”

राजा जन्मेजय का प्रश्न: कौन थे मेरे पूर्वज?

जब राजा जन्मेजय ने ऋषि वैशंपायन से यह कथा सुनी, तो उन्होंने उत्सुकता से पूछा,

“हे ऋषिवर! मेरे पूर्वज भीष्म पितामह, महात्मा विदुर, अर्जुन, अभिमन्यु और युधिष्ठिर कौन थे? क्या वे भी साधारण मनुष्य थे?”

वैशंपायन जी ने कहा, “आपने उत्तम प्रश्न किया है। ये सभी महापुरुष वास्तव में दिव्य शक्तियों के अंश थे, और उनका जन्म किसी ना किसी दैवी योजना के तहत हुआ था।”

विदुर और भीष्म के जन्म का रहस्य: मांडव्य ऋषि का श्राप

सर्वप्रथम ऋषि ने विदुर और भीष्म के जन्म का रहस्य बताया।

पूर्वकाल में मांडव्य ऋषि, जो महान तपस्वी और मौन व्रती थे, उनके आश्रम में कुछ चोर छिप गए। राजा के सिपाहियों को चोरी का सामान वहीं मिला। मौन में रहने के कारण ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया, जिससे उन्हें भी चोर समझकर शूली पर चढ़ा दिया गया।

जब यह अन्याय देवताओं के समक्ष आया, तब यमराज ने कहा कि मांडव्य ऋषि ने बाल्यकाल में एक जीव को पीड़ा दी थी, उसी के फलस्वरूप उन्हें यह दंड मिला।

यह सुनकर ऋषि क्रोधित हो गए और यमराज को श्राप दिया कि “तुम भी मनुष्य योनि में दासीपुत्र के रूप में जन्म लोगे।”

इसी श्राप के फलस्वरूप यमराज ने विदुर के रूप में जन्म लिया।

भीष्म पितामह: वसु देवताओं में से एक

भीष्म का जन्म भी एक शाप का परिणाम था। वे आठ वसु देवताओं में से एक थे। उन्होंने वशिष्ठ ऋषि के आश्रम से चोरी कर ली थी, जिससे ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि वे धरती पर मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे।

गंगा देवी ने उन्हें अपने गर्भ से जन्म दिया और बाद में शांति से गंगाजल में समाहित कर लिया। परंतु एक वसु—जो ज्यादा दोषी था—उसे लंबा जीवन मिला। वही आगे चलकर भीष्म पितामह बना।

देवताओं-असुरों के अंश से जन्मे पांडव और कौरव

युधिष्ठिर – धर्मराज यम के अंश से

भीम – वायु देव के अंश से

अर्जुन – इंद्र देव के अंश से

नकुल-सहदेव – अश्विनीकुमारों के अंश से

कर्ण – सूर्य देव के अंश से

अभिमन्यु – चंद्रवंशीय बल और श्रीकृष्ण की कृपा से

कौरव – असुरों के अंश से उत्पन्न, विशेष रूप से दुर्योधन बलशाली असुर कली का अंश था

निष्कर्ष

महाभारत केवल एक युद्ध नहीं, बल्कि दैवी योजनाओं और कर्मों के फल का परिणाम है। इन पात्रों का जन्म और जीवन इस बात का प्रमाण है कि सत्य, धर्म और न्याय के लिए संघर्ष करना ही जीवन का मूल उद्देश्य है।

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