छत्तीसगढ़ में अब गौशालाओं के साथ-साथ नए गौधाम भी स्थापित किए जाएंगे। यदि किसी पंजीकृत गौशाला की समिति संचालन के लिए असहमति व्यक्त करती है, तो संचालन का मौका अन्य स्वयंसेवी संस्था, एनजीओ, ट्रस्ट, फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी या सहकारी समिति को दिया जाएगा। जिला प्रशासन के प्रस्ताव पर बनने वाले ये गौधाम, पारंपरिक पंजीकृत गौशालाओं से अलग होंगे।
पहले चरण में राष्ट्रीय राजमार्ग किनारे ग्रामीण क्षेत्रों में गौधाम
प्रारंभिक चरण में छत्तीसगढ़ के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों के आसपास स्थित ग्रामीण क्षेत्रों में गौधाम स्थापित किए जाएंगे। जिला स्तरीय समिति प्राप्त आवेदनों का तुलनात्मक अध्ययन कर चयनित संस्था का नाम छत्तीसगढ़ राज्य गौ सेवा आयोग को भेजेगी। मंजूरी मिलने के बाद चयनित संस्था और आयोग के बीच करार होगा, जिसके पश्चात गौधाम का संचालन उस संस्था को सौंपा जाएगा।
गोबर खरीदी नहीं, चारा विकास को मिलेगा प्रोत्साहन
गौधाम में गोबर खरीदी की व्यवस्था नहीं होगी। यहां रखे गए पशुओं के गोबर का उपयोग चरवाहा स्वयं करेगा। इन गौधामों में केवल निराश्रित एवं घुमंतु गौवंशीय पशुओं को रखा जाएगा और उनका वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षण एवं संवर्धन किया जाएगा। संचालन में गौशालाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
राज्य गौ सेवा आयोग में पंजीकृत गौशाला की समिति, स्वयंसेवी संस्था, एनजीओ, ट्रस्ट, किसान उत्पादक कंपनी और सहकारी समिति संचालन के लिए पात्र होंगी। गौधाम को वहां रहने वाले पशुओं की संख्या के आधार पर आर्थिक सहायता दी जाएगी। साथ ही, गौधाम से सटी भूमि पर चारा विकास कार्यक्रम के लिए भी राशि दी जाएगी — एक एकड़ पर ₹47,000 और पाँच एकड़ पर ₹2,85,000 का प्रावधान है।
गौधाम बनेंगे प्रशिक्षण केंद्र, बढ़ावा मिलेगा गौ-उत्पादों को
प्रत्येक गौधाम को प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। संचालनकर्ता संस्था ग्रामीणों को गौ-उत्पाद आधारित प्रशिक्षण देगी और उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरित करेगी। गोबर और गौमूत्र से केंचुआ खाद, कीट नियंत्रक, गौ काष्ठ, गोनोइल, दीया, दंतमंजन, अगरबत्ती आदि बनाने का प्रशिक्षण, उत्पादन और विपणन का कार्य भी यहां से संचालित होगा।
इन प्रयासों से न केवल निराश्रित पशुओं का संरक्षण होगा बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।